Last modified on 27 जून 2019, at 04:14

झुठलाया मुझको / कविता भट्ट

वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:14, 27 जून 2019 का अवतरण ('{{KKRachna |रचनाकार=कविता भट्ट |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


चाँद आकाश छोड़ चला तारे बहुत गमगीन हैं,
 यूँ चाँद की कहानी से उसने बहलाया मुझको।

रात बरी हुई, रात की रानी पर इल्ज़ाम संगीन है,
फिर भी महकेगी कहके उसने सुलाया मुझको।

ज्वार-भाटा है समन्दर में, वह मल्लाह ताज़तरीन है,
लहरों का वश कुछ नहीं, मज़ाक बताया मुझको।

पैमाने खाली हैं, मधुशाला में भीड़ बहुत रंगीन है,
मधुबाला भरेगी रात भर, उसने समझाया मुझको।

आज हो तारीफ ए इंसाफ, कि 'कविता' बेहतरीन है,
इसे जज़्बात कह हर बार उसने झुठलाया मुझको ।
-0-