Last modified on 3 जुलाई 2019, at 23:24

पदचिन्ह / कुलवंत सिंह

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:24, 3 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुलवंत सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बचपन में मैने महाभारत पढ़ी थी
युधिष्ठिर का चरित्र भाया था।
सोचा था -'मै भी
जीवन में सदैव सत्य बोलूंगा।'
समझ नही आता -
आज लोग मुझे
'पागल' क्यों कहते हैं ?

बचपन में मैने गौतम बुद्ध को पढ़ा था
उनका साधूपन भाया था।
सोचा था - 'मै भी
तन से न सही
मन से अवश्य साधू बनूंगा।'
समझ नही आता -
आज लोग मुझे
'बेवकूफ' क्यों कहते हैं ?

बचपन में मैने गीता पढ़ी थी
कृष्ण का उपदेश भाया था
सोचा था –‘मै भी
कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन
अपनाऊँगा।‘
बस कर्म करूंगा
फल की इच्छा नही रखूंगा।
समझ नही आता -
आज लोग क्यों कहते हैं -
अरे! इसका खूब फायदा उठा लो
बदले में कुछ नही मांगता!

बचपन में मैने पढ़ा था-दहेज कुप्रथा है।
सोचा था - 'बिना दहेज शादी करूंगा
पत्नी को सम्मान दूंगा,
उसके माँ बाप को
अपने माँ बाप का दर्जा दूंगा।'
समझ नही आता -
आज लोग मुझे क्यों कहते हैं -
धोबी का --------
न दामाद न बेटा !

बचपन में मैने गांधी को पढ़ा था।
सोचा था- ' मै भी अपनाऊँगा
सादा जीवन उच्च विचार'
समझ नही आता -
आज लोग मुझे
'गधा' क्यों कहते हैं?

बचपन में मैने मदर टेरेसा को पढ़ा था ।
सोचा था- 'बड़ा हो कर
मै भी करूँगा
लोगों की निस्वार्थ सेवा।'
समझ नही आता -
आज लोग मुझे क्यों कहते हैं -
जरूर इसकी निस्वार्थ सेवा में भी
कुछ स्वार्थ होगा !