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दीप धरो / महेन्द्र भटनागर

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सखि ! दीप धरो !

काली-काली अब रात न हो,
घनघोर तिमिर बरसात न हो,
बुझते दीपों में हौले-हौले,

सखि ! स्नेह भरो !

दमके प्रिय-आनन हास लिए,
आगत नवयुग की आस लिए,
अरुणिम अधरों से हौले-
हौले,

सखि ! बात करो !

बीते बिरहा के सजल बरस
गूँजे मंगल नव गीत सरस
घर आये प्रियतम, हौले-हौले

सखि ! हीय हरो !