खींचता था घर की तरह
बचपन की तरह जिसमें लौटा नहीं जा सकता
गोपनीय क्षणों की उजास भरी ख़ुशबूदार सुरँग थी वह
बहुत घना एकान्त था दो झींगुरों के बाद भी
बाद के दिनों में मैंने उस सुरँग को नमक में बदला
उधर स्वाद बढ़ा
खींचता था घर की तरह
बचपन की तरह जिसमें लौटा नहीं जा सकता
गोपनीय क्षणों की उजास भरी ख़ुशबूदार सुरँग थी वह
बहुत घना एकान्त था दो झींगुरों के बाद भी
बाद के दिनों में मैंने उस सुरँग को नमक में बदला
उधर स्वाद बढ़ा