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रतजगा / महेन्द्र भटनागर

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रह-रह कहीं दूर, मधु बज रही बीन !

आयी नशीली निशा
मदमस्त है हर दिशा

घिर-घिर रही याद, सुधबुध पिया-लीन !

मधु-स्वप्न खोया हुआ
जग शांत सोया हुआ

प्रिय-रूप-जल-हीन, अँखियाँ बनी मीन !

आशा-निराशा भरे
जीवन-पिपासा भरे

दिल आज बेचैन, खामोश, ग़मगीन !

रोती हुई हर घड़ी
कैसी मुसीबत पड़ी

जैसे कि सर्वस्व मेरा लिया छीन !