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गुरुत्वाकर्षण के पार / ईहातीत क्षण / मृदुल कीर्ति

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एक दुर्निवार सम्मोहन

कौन मुझे गुरुत्वाकर्षण के पार पुकार रहा है ?

कौन की खोज ?

यह अनिर्वार है.

यह अनिवार्य है.

कौन के खोज की जिज्ञासा ?

मेरे अस्तित्व के अटल मैं उठ रही है.

कौन की खोज ?

मेरे अस्तित्व की शर्त बनती जा रही है.

इसका उत्तर मुझे पाना ही होगा .

चाहें आगम निगम को उलट डालना पड़े .

अस्तित्व के मूल को बींधता हुआ यह कौन?

एस प्रशन का आकाश की तरह अनाहत प्रसारण

मुझे गुरुत्वाकर्षण के पार लिए जा रहा है.

क्योंकि?

आकर्षण मन की कमजोरी के क्षण हैं,

विकर्षण, आकर्षण से चोट खाए मन के क्षण हैं.

गुरुत्वाकर्षण इनसे परे प्रज्ञा उदयन के क्षण हैं.

`

जहाँ न पीछे कोई विकर्षण हो ,

न ही आगे कोई आकर्षण हो .

न किसी से सम्मोहित.

न किसी से विमोहित.

केवल आत्म सम्मोहित.

केवल आत्म विमोहित.