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अजातशत्रु / कैलाश मनहर

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शोषकों के विरुद्ध लड़ते हुए
मेरे जीवन में
बहुत से शत्रु बन गए हैं जबकि
इधर अजातशत्रु होना
सद्गुण माना जा रहा है
और मैं अपने वर्ग शत्रुओं के ख़िलाफ़
आग उगल रहा हूँ ।
सत्ता के अन्याय के विरुद्ध
खड़े होकर
दरबारियों का मित्र
कैसे रह सकता हूँ मैं आख़िर ?

न्याय और समानता के पक्ष में बने हुए
विषमता पैदा करने वालों से
शत्रुता तो आवश्यक है ।
भला, सकारात्मक कैसे कहूँ
मैं स्वयं को ?
बेईमानी से लाभ कमाने की इस छद्म प्रक्रिया में
कैसे बना रहूँ अजातशत्रु ?

आत्मवँचना के साथ
जो भी कोई
अजातशत्रु होने का दावा करता है,
इन दिनों
साफ़-साफ़ सुनो
यह कटु सत्य पूर्णतया
उसकी मिलीभगत है
मानवता के शत्रुओं से ।

मुझे माफ़ करो, मेरे मित्रो !
मेरे परिवारजनो !
मैं अजातशत्रु बन कर नहीं रह सकता
शोषकों के विरुद्ध लड़ते हुए ।

अजातशत्रु जो हैं इस समय
शोषण की सत्ता के साथ हैं अधिकतर ।