बालकवि बैरागी (मूलनाम नन्दराम) का जन्म मंदसौर जिले की मनासा तहसील के रामपुर गांव में हुआ। नाम तो उनका नंदराम था। बालकवि बैरागी कैसे हुआ? पता लगा कि तब की बात है जब बैरागीजी मुश्किल से आठ-नौ बरस के रहे होंगे। जावरा के कैलाशनाथ काटजूजी ने, जो बाद में गृहमंत्री रहे, बालक से कहा, कोई कविता सुनाओ ! बालक नंदराम ने राष्ट्रप्रेम की ऐसी जबरदस्त कविता सुनाई कि वे ही नहीं, आसपास के सब लोग गद्गद हो गए! काटजू बोले, अब से इस लड़के का नाम होगा—बालकवि बैरागी। बैरागीजी के बचपन में गरीबी गूँजती थी। अपने दिव्यांग पिता को चार छोटे-छोटे पहियों की गाड़ी पर बिठाकर वे रस्सी से खींचते थे, और टीपदार स्वर में देशभक्ति के गीत गाते थे। लोग कटोरे में सिक्के डाल देते थे। उनसे घर का खर्च और स्वाभिमान से उनकी पढ़ाई चलती थी। अपनी गरीबी का गौरवीकरण करने में उन्हें अंत तक कोई संकोच नहीं हुआ। मँगता से मिनिस्टर होने की अपनी गाथा गर्व से सुनाते थे। उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम०ए० किया। वे राजनीति एवं साहित्य दोनों से जुड़े रहे। मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री तथा लोकसभा के सदस्य रहे तथा हिन्दी काव्य- मंचों पर भी लोकप्रिय रहे। इनकी कविता ओजगुण सम्पन्न हैं। मुख्य काव्य-संग्रह हैं : 'गौरव-गीत, 'दरद दीवानी, 'दो टूक, 'भावी रक्षक देश के आदि।