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पहचान / साधना जोशी

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बेटी होना काफी नहीं एक स्त्री के लिए,
बेटी बनकर अपने समाज को भी,
देनी पड़ेगी कुछ सौगाते ।

स्त्री एक आधार बिन्दु है,
समाज के लिए ।
वह संवाहक ह,ै
एक पीढ़ी से दूसरी पीड़ी की ।

बेटी बनकर कई भूमिकाओं को,
निभाने है उसे ।
जिसके लिए मान मर्यादओं को भी,
साथी बनाना होगा ।

अपने कर्तव्यों को निभाने की समझ भी,
विकसित करनी है अपने लिए,
सहारा बनाना ही नहीं बनना है,
सहारा,दुसरों के लिए,
रखनी है सावधानी कठिन राहों में ।
प्रभाव जमाना है समाज पर ।
ध्यान रखना है कि,
हम किसी का घर न उजाड़े,
स्वार्थ अन्धता न अपनाये,
 और नाजुकता छोडे़ं ।
हम बेटी ही नहीं बहु भी हैं किसी की,
उन्होने भी अपना बेटा हमाकों दान दिया,
जीवन भर के लिए ।
अन्याय न करना है, न सहना है,
षक्ति भरनी है, अपनी भुजावों में ।
आत्म सम्मान के साथ,
कदम बढ़ाने है उन्नति की राह पर ।
 
बचाना है परिवार,
समाज और राश्ट्र को,
आषिर्वाद लेना है उन हाथों से,
जो सलाम करेंगे,
हमे ऊँचाइयों को छूने पर ।