Last modified on 19 जुलाई 2019, at 23:35

किन्नर / अनीता मिश्रा

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:35, 19 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनीता मिश्रा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वाह रे प्रभु तेरी माया।
माँ-कोख भी
शर्मिंदा किया
जन्म देकर हमे।
किसी ने ना बधाई दी,
ना किसी ने देखा,
एक घृणा की नजर
ही बनी मेरी ये जिंदगी।

त्रिशंकु बन अधर में
लटका रहा
ले गये उठाकर
अपने जाति में मुझे
अपनों से दूर हुए.

ताली बजाना
स्वांग रचना
जीवन यापन
के लिए पैसे कमाना
ये ही रही बन्दगी मेरी।

नर ना नारी कैसा
अभिशप्त ये जीवन
जी करता
भगवन तेरी कृपा
पर भी ताली बजाऊँ
अपने मन के दुखों की
प्यास बुझाऊँ।


माँगता हूँ अब अधिकार अपना
जीवन-जीने का सपना
हमे भी इज्जत की रोटी
है कहानी,
मेहनत कर सबको दिखानी।

अब नहीं होता हास्य-ड्रामा,
आता है आँखों में पानी
हम देते सबको आशिष,
तब हमें मिलता बख्शीश।


ये जीवन है तो हमे भी सम्मान मिले,
एक नया जीवन का आसमान मिले
सबके साथ हमे भी रहने का अरमान मिले।
कोई तो हाथ बढ़ाओ,
कोई तो हमे उठाओ

एक नई आवाज दो,
हमे भी हमारा समाज दो।
हमे भी हमारा समाज दो।