Last modified on 21 जुलाई 2019, at 13:44

कसा हुआ अहसासों से मैं / संजय पंकज

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:44, 21 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय पंकज |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGeet}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रहकर तुमसे दूर-दूर मैं
क्षणभर भी उन्मुक्त नहीं हूँ!

फिजा सिसकती रहती लेकर
तेरी सांसों का झंझानिल
चक्रवात पग को उलझाकर
चलता मेरे मग से अनमिल

बँधा बँधा सुधि से पलछिन मैं
सच तेरा अभियुक्त नहीं हूँ!

इंगित करता दारुण बिछुड़न घुलमिल पास-पास है रहना
पियराते ही जोत प्रीत की
दर्द सर्द पड़ता है सहना

रीत रही है मधु की गागर
मैं विष के उपयुक्त नहीं हूँ!

बड़ा कठिन है इस जगती में
बिन देखे निर्भय डग भरना
दुख पर चिहुँक चौंकते उर को
पड़ता जिन्हें विवश वश करना

कसा हुआ अहसासों से मैं
संवेदना विमुक्त नहीं हूँ!

क्या क्या देखूँ अनदेखी मैं
खुली सचाई—सी सपने में
ललक लपकती मिलने मुझसे
ठमक ठिठकती पर अपने में

सिक्त स्नेह से पोर-पोर जलता-हूँ,
जलन नियुक्त नहीं हूँ!

चाह यही इतनी है अपनी
रहूँ कैद तेरे मधुपुर में
यदि घहरूँ घुमरूँ या बरसूँ
तो तेरे ही रिमझिम सुर में

तेरी सांसों पर मैं बिछलूँ
लय में अन्तर्भुक्त नहीं हूँ!