जब जब आई याद तुम्हारी
मन मेरा नैनीताल हुआ!
काशी जैसी काया लेकर
वृन्दावन की माया लेकर
तीरथ तीरथ भटक रहा हूँ
पीठ पीठ की छाया लेकर
तृष्णा तृष्णा जीवन जीता
कृष्णा-सा मैं बेहाल हुआ!
खजुराहो की कविता-सी तुम
मेवाड़ी प्रिय वनिता-सी तुम
कश्मीरी तुम हवा सलोनी
केरल की मृदु लतिका-सी तुम
क्षेत्र क्षेत्र की रंग गंध तुम
छंद छंद मैं चौपाल हुआ!
याद तुम्हारी ऊटी-शिमला
गंगोत्री की गंगा विमला
डुबकी डुबकी जब उतराया
उतर गई अंतर में कमला
दिल्ली लोट गई चरणों में
मुंबई—सा मालामाल हुआ!