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दोहे-3 / महेश मनमीत

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दुनिया के हर देश में, होगा खूनी खेल।
अगर नहीं काटी गई, आतंकी विष-बेल॥

बस सूरत को छोड़कर, है गुणधर्म समान।
यत्र-तत्र-सर्वत्र हैं, बिना पूँछ के श्वान॥

खड़ा सरोवर-नीर में, साधे रहता मौन।
बगुले जैसी साधना, कर सकता है कौन॥

पीछे मुड़ कर देिखए, हुई कहाँ पर चूक।
केसर वाले खेत में, उग आई बंदूक॥

आया है बाजार में, क्या सुंदर बदलाव।
गोबर भी बिकने लगा, देखो गुड़ के भाव॥

जब बदले की भावना, लेती है प्रतिशोध।
कब रहता इंसान को, सही गलत का बोध॥

बड़भागी है लोग वो जिनके ऐसे मित्र।
रखते हैं जो एक सा, चेहरा और चरित्र॥

घर-बाहर दिखती नहीं, बहनें जब महफूज।
कैसा राखी बाँधना, कैसा भैया दूज॥

तभी मौत से जिंदगी, अक्सर जाती हार।
सस्ती है बीमारियाँ, महँगा है उपचार॥

समझौतों की मेज पर, कूटनीति के दाँव।
रोज गोलियाँ झेलते, सीमावर्ती गाँव॥

नई बहू ने बोल दी, जाने कैसी बात।
माँ दिनभर भूखी रही, रोई सारी रात॥