Last modified on 22 जुलाई 2019, at 22:26

मुक्ति / कुँअर रवीन्द्र

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:26, 22 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुँअर रवीन्द्र |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दरवाज़े. खिड़किया
खोल देने भर से
हम मुक्त नहीं हो जाते
मुक्ति के लिए
दीवारें भी गिरानी पड़ती हैं
 
परन्तु दीवारों की जगह
जब आदमी गिरने लगे
तब समझ लेना चाहिए कि
मिला हुआ समय
अब ख़त्म हो चुका है