Last modified on 13 अगस्त 2008, at 23:31

चांदनी में / महेन्द्र भटनागर

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:31, 13 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह= मधुरिमा / महेन्द्र भटनागर }} न...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नयी चांदनी में नहालो, नहालो !

नयन बंद कर आज सोये सितारे,
भगे जा रहे कुछ किनारे-किनारे,
खुले बंध मन के हमारे-तुम्हारे,

किरण-सेज पर प्रिय ! प्रणय-निशि मनालो !

झकोरे मिलन-गीत गाने लगे हैं,
मधुर-स्वर हृदय को हिलाने लगे हैं,
नये स्वप्न फिर आज छाने लगे हैं,

हँसो और संकोच-परदा हटालो !

जवानी लहर कर जगी मुसकरायी,
सिमटती बिखरती चली पास आयी,
बड़े मान-मनुहार भी साथ लायी

सुमुखि ! अब स्वयं को न बरबस सँभालो !

भ्रमर को किसी ने गले से लगाया,
सरस-गंध मय अंक में भर सुलाया,
बड़े प्यार से चूम झूले झुलाया,

लजीली ! मुझे भी न बन्दी बना लो !