Last modified on 13 अगस्त 2008, at 23:37

आकुल-अन्तर / महेन्द्र भटनागर

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:37, 13 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह= मधुरिमा / महेन्द्र भटनागर }} आ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आज है बेचैन मन
कुछ बात करने को प्रिये !
एकरस इतनी विलंबित
मौनता अब हो रही है भार,
जब सतत लहरा रहा शीतल
रुपहला स्निग्ध पारावार,

हो रहा बेचैन मन
उन्मुक्त मिलने को प्रिये !

शुष्क नीरस सृष्टि में जब
छा गये चारों तरफ़ नव बौर,
भाग्य में मेरे अरे केवल
लिखा है क्या अकेला ठौर ?

हो रहा बेचैन मन
कुछ भेद कहने को प्रिये !