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अख़बार / सुभाष राय

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लो केवल डेढ़ रुपये में
दस आदमियों का ख़ून
विधवा के साथ एक दर्जन
सिपाहियों द्वारा रातभर बलात्कार

कमीशन भी मिलेगा
पचास पैसे काट लो
लो, केवल एक रुपये में
शहर पर आतँक के साए
मँगरू की बेटी का अपहरण, फिर ख़ून

पुराने ग्राहक हो
तुमसे क्या सौदा
ले जाओ, बाँट दो शहर में
दँगाइयों द्वारा काटे गए गले

यह तो धन्धा है, प्यारे
कुछ खोओ, कुछ पाओ
कुछ खिलाओ, कुछ खाओ
मौत के बाज़ार में हिस्सा बँटाओ
चाहो तो कुछ दोस्तों को भी रोज़गार दिलाओ

पहचान के आदमी हो
पैसा चाहे कल दे देना
लो, जिस्मफ़रोशों के चँगुल से
छूटी लड़की थानेदार के हाथों फँसी
लुट-लुटाकर भी चार हज़ार में बिकी

मोलभाव भी कर लो
नाक-भौं क्यों सिकोड़ते हो
इतना मसाला क्या कम है
चिन्ता मत करो, ले जाओ
न बिके तो वापस कर जाना

कुछ ऐसा जो कहीं नहीं मिलेगा
ग़रीबों के जिगर का व्यापार
एक-एक् के पचास-पचास हज़ार

लो, साधु की कुटिया से
बरामद बच्चों की खोपड़ियाँ
एक साथ पुल से छलाँग लगाने
वाले प्रेमी युगल के क्षत-विक्षत शव

बिकेगा, ख़ूब बिकेगा
संसद में सरफोड़ तमाशा
मन्त्री के यौनाचार का खुलासा
देर मत करो, आँख मून्द कर ले जाओ
आओ भीड़ जुटाओ, नए ग्राहक बनाओ
अब रुकने वाला नहीं है मेरा व्यापार, यह अख़बार