जीते जी मार सकते हो ख़ुद को
अपने ही हाथ के खँजर से ?
हाँ, तो आओ अनन्य भाव से
बिना चाह, बिना चिन्ता
तन, मन, प्राण सौंप दो मुझे
तुम्हारा सम्पूर्ण योग-क्षेम ओढ़ लूँगा मैं
जीते जी मार सकते हो ख़ुद को
अपने ही हाथ के खँजर से ?
हाँ, तो आओ अनन्य भाव से
बिना चाह, बिना चिन्ता
तन, मन, प्राण सौंप दो मुझे
तुम्हारा सम्पूर्ण योग-क्षेम ओढ़ लूँगा मैं