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झूठा सौदा / सुभाष राय

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उसने सुना था
धर्मस्य तत्वं निहितं गुहायां
बिना गुफ़ा में बैठे
न धर्म आता है, न ज्ञान

उसने एक गुफ़ा बनाई
उसमें निपट अन्धेरा था
वह गुफ़ा में बैठा
बाहर की आँखें बन्द हो गईं
भीतर की खुल गईं
वह रहा, नहीं रहा

टूटी योगनिद्रा, जागा अटल विश्वास
ज्ञानी है, पाया है प्रकाश
प्रबल उद्घोष चारों ओर
तन मन धन सब उसका
साक्षात परमपिता
गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वर:

अब जो भी मिटने को तैयार होगा
गुफ़ा में जाकर मुक्त कहलाएगा

सैकड़ों साध्वियाँ गईं गुफ़ा में
और चुप हो गईं

अनिर्वचनीय
गूँगे का गुड़ है ज्ञान
चख तो सकता है
पर स्वाद नहीं बता सकता
गिरा अनयन नयन बिनु बानी

जो बहुत बोलता है
तत्व नहीं जानता
जो जानता है, बोलता नहीं
चुप हो जाता है अक्सर
भीतर बहने लगता है अमृत निर्झर

जिन्हें ज्ञान हुआ, वे चुप थे
जिन्हें ज्ञान की प्रत्याशा थी
वे भी चुप थे
शायद किसी दिन
गुफ़ा में बुला ले पिता

जीव जगत सब कुछ है नश्वर
सच्चे सौदे की आस में
लाखों करोड़ों लोग
मरने मारने को तत्पर

एक दिन एक साध्वी ने
अन्धेरे को अन्धेरा कहना चुना
गुफ़ा में जाकर भी उसकी आँखें बन्द नहीं हुईं
उल्टी दिशा में चल पड़ी घड़ी की सुई

सौदा तो सौदा ही होता है
भक्तों को डर था एक दिन ज़रूर आएगी
साँच को आँच
वे तैयार थे, मन से तन से
लाखों डरे हुए, थर-थर काँपते हुए
बढ़ चले तुमुल घोष के साथ

ब्रह्म सत्यम जगत मिथ्या
जो दिखता है, वो झूठा
जो नहीं दिखता, सच्चा
और इसी सच की रक्षा के लिए
उन्होंने मोह माया के
जग को आग लगा दी

जो नहीं हारा तैमूर से
गज़नबी गोरी से
वह सिरसुति हार गया
राम से, रहीम से

सरस्वती के निर्मल जल पर
उँगली रखकर कभी
इब्न बतूता ने लिखा था, अकथ शान्ति
सिरसा में उग्र लपटें देख
ठिठक गई है उसकी क़लम
अब कैसे लिखेगा
मस्ताना बलूचिस्तानी का ज़र्द चेहरा

अपने शहर को जलता देख
भागते-हाँफते आए सरदार अँजुम
चीख़-चीख़ पूछने लगे —
मिल गई थी जब हमें इसकी ख़बर
कोशिशें नाकाम कैसे हुईं
दँगाइयों को रोक-रोक सुना रहे थे
अपना कलाम —
अपने बदन को देख तो छूकर
मेरे बदन की मिट्टी है

लेकिन सबके कान पहले से ही भरे थे
कोई सुन नहीं रहा था उनकी
किसी ने धक्का देकर
सड़क पर गिरा दिया उन्हें
और पगलाई भीड़ अपने शायर को
रौन्दती हुई आगे बढ़ गई
उनकी ठण्डी काँपती आवाज़ गूँज रही थी —
सोच समझकर तुमने जिनके
सभी घरौन्दे तोड़ दिए
अपने साथ जो खेल रहा था
उस बचपन की मिट्टी है

बाद में लाशों की शिनाख़्त हुई
पँचकुला में जो मरे थे
उनमें एक सरदार अँजुम भी हैं ।