पहाड़ियाँ रेंग रही हैं रक्षक-वाहनों से
मद्धिम रोशनियाँ घूमती हैं, ऊपर-नीचे
पर्वत-श्रेणियों पर
प्रस्थित फिर किसी दीमक लगे
शहर की ओर ।
ललछौंही देवशिला
सबको गुज़रते हुए देखती रहती है ।
एक बार वह बोली थी,
रक्तवर्णी पाषाण खण्ड
साक्षी हैं उसके ।
देवशिला ! मैं एक तीर्थयात्री हूँ,
मुझे बताओ —
दिल को कहाँ राहत मिलती है ?
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनामिका