Last modified on 3 अगस्त 2019, at 02:41

लिखने जैसा / नईम

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:41, 3 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= नईम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <poem> ल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

लिखने जैसा लिख न सका मैं
सिकता रहा भाड़ में लेकिन,
ठीक तरह से सिक न सका मैं ।

गत दुर्गत जो भी होना थी, ख़ुद होकर मैं रहा झेलता,
अपने हाथों बना खिलौना, अपने से ही रहा खेलता.
परम्परित विश्वास भरोसों पर
यक़ीन से टिक न सका मैं ।

अपने बदरँग आईनों में, यदा-कदा ही रहा झाँकता,
थी औक़ात, हैसियत, लेकिन अपने को कम रहा आँकता,
ऊँची लगी बोलियाँ लेकिन,
हाट-बाज़ारों बिक न सका मैं ।

अपने करे-धरे का अब तक, लगा न पाया लेखा-जोखा,
चढ़ न सकेगा अपने पर अब भले रँग हो बिलकुल चोखा,
चढ़ा हुआ पीठों मँचों पर
कभी आपको दिख न सका मैं ।