Last modified on 3 अगस्त 2019, at 03:28

सूनी हवेलियाँ / दिनकर कुमार

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:28, 3 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनकर कुमार |अनुवादक=कौन कहता है...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

क़स्बे की अधिकतर हवेलियाँ सूनी हैं
इनका सूनापन तँग गलियों में
विलाप करता है
कोई परदेशी इस तरफ क्यों नहीं आता

किसी हवेली में
हैं सौ कमरे
और पाँच सौ झरोखे
हवादार मुण्डेर
जहाँ बैठता है कबूतरों का समूह

किसी हवेली में रहती है
एक अकेली स्त्री
जो या तो विधवा है
या जिसका पति वर्षों से नहीं लौटा

उस अकेली स्त्री के सामने
हवेली की भव्यता
धुन्धली नज़र आने लगती है
 
सूनी हवेली भी
अकेली स्त्री
बन जाती है