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प्रतीक्षारत / अजित कुमार

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खिले अगणित फूल।

कुछ ॠतुराज के चरणों तले

दूर्वादलों में और

कुछ श्रृंगार माथे का बने:

वृक्षों-लताओं के मुकुट जैसे पले।


गन्धयुत, मधुमय धरित्री से

सितारों-विद्युतों से तने

नीलाकाश तक

अनगिनत साँचों में ढले

वे खिले अगणित फूल।

(कुटिया में, महल में, या 'विजन-वन-वल्लरी पर '।)


एक मैं हूँ :

स्वप्न-सर्जित, राग-चर्चित पुष्प,

आकुल, चिर-प्रतीक्षारत कि

मेरी पंखुरी की भाग्य-रेखा पर लिखा है

नाम जिनका,

वे अपरिचित देव

जो अब विफलताओं से पराजित हो रहे होंगें-

किसी अज्ञात पथ-निर्देश से संकेत पाकर

यहाँ आएँ,

मुझे देखें :देखते रह जायँ ,

तोड़ें, सूँघ लें : मन में बसाकर गन्ध

मसलें : फेक दें, बस ।