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विसंगति / महेन्द्र भटनागर

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हम
आधुनिक नहीं,
किन्तु युग ‘आधुनिक’ है !
(कथन अलौकिक है !)

यद्यपि
तन अत्याधुनिक लिबास धारे,
किन्तु
मन जकड़े हैं हमारे
रूढ़ियों
अंध-विश्वासों से,
गतानुगत परम्पराओं
असंगत अर्थहीन प्रथाओं
आदिम संस्कारों से,
हस्त-रेखाओं
सितारों से !

मानसिकता हमारी
प्रागैतिहासिक है,
किन्तु युग ‘आधुनिक’ है !

आधुनिकता: मात्रा मुखौटा है
हमारे
दक़ियानूसी चेहरों पर,
आधुनिकता:
जगर-मगर करता
खोटा गोटा है
कोठियों पर
घरों पर।

हमारा पुराणपंथी चिन्तन
हमारा भाग्यवादी दर्शन
धकेलता है हमें
पीछे... पीछे... पीछे
अतीत में
सुदूर अतीत में
असामयिक मृत व्यतीत में।

वैज्ञानिक उपलब्धियाँ हैं
हमारे पास;
किन्तु
वैज्ञानिक दृष्टि नहीं,
दृष्टिकोण नहीं —

(स्थिति यह
कोई उपेक्षणीय
गौण नहीं।
अद्भुत है,
अश्रुत है।)

लकीर के फ़कीर हम
आँख मूँद कर चलते हैं,
अपने को आधुनिक कह
अपने को ही छलते हैं !

कहाँ है
नये ज़माने का
नया इंसान ?
मूर्ख महन्तों को
पुजते देख
अक्ल है हैरान !