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जीवन नहीं / महेन्द्र भटनागर

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जीवन नहीं, जीवन नहीं !

सौभाग्य ही केवल न मन की साध है,
रोना यहाँ दुर्भाग्य पर अपराध है,

यह भूलना —

क्षण आपदाओं के महान भविष्य के आभास;

यदि इतना नहीं विश्वास

तो ज़िन्दगी का वह कभी
दर्शन नहीं, दर्शन नहीं !

सपने नयन-आकाश में छाते रहें,
अपने लिए ही गीत हम गाते रहें,

यह भूलना —

परमार्थ, सेवा-भावना ही मानवी आधार !

यदि इतना नहीं स्वीकार

तो श्वास तेरी बद्ध, उर
धड़कन नहीं, धड़कन नहीं !

उद्यान में केवल न खिलते फूल हैं,
उड़ती हुई भी प्रति चरण पर धूल है,

यह भूलना —

अवरुद्ध बंधन-ग्रस्त जीवन से सदा विद्रोह,

यदि निज प्राण से है मोह

तो शक्ति का उन्माद क्या
यौवन नहीं, यौवन नहीं !