प्रेक्षागृह में
प्रेक्षक नहीं, मात्र मैं हूँ! मैं— अभिनेता, नायक! जिसका जीवन प्रहसन नहीं, त्रासद .... शोकान्त ! मैं ही जीवन की मुख्य -कथा का निर्माता टूटे-स्वर से गा....ता समाधि गान! जिसकी करुण तान अनाकर्षक रस विहीन! मैं ही भोजक भोज्य! आदि ... मध्य... अंत विषाद सिक्त नील तंतु से निर्मित, बोझिल मंथर गति से विकसित! पर, मादक प्रकरी-सी तुम कौन? रंभा? उर्वशी ? एकरस कथानक में अचानक ! यह सब 'सहसा' है, अनमिल अस्वाभाविक है !