जान ले संगी पांच चक्कर वट पार है
जनम मरन के चकरम ला निहार ले
जान ले संगी....
पांच चक्र मां सुध खेल गंवाये
मोर मोर कहि तें नित गाये
उधारी के काया माया, आत्मा संग विचार ले
जान ले संगी.....
पहिली चक्र मा जी धन बल पाये
दूसर चक्र हा कामला जगाये
तिसरे मोह चौथे अहम हे, पांचवे लेत रस लार हे,
जान ले संगी...
अरपन करदे तन के गुन धरम ला
साध ले मितवा मानुस के करम ला
गुरु सिखावन नोहर हे जोनी
परमात्मा सत हे जोहार ले ।