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भक्ति करव / शिवकुमार पांडेय

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भाव करव भक्ति करव प्रेम करव रे
ये चोला ल संगी झन बदनाम करव रे ……

लाख चौरासी जोनी ले संगी, मानुष तन हे आगे
कुकुर बिलई येला संगी, मोक्ष पावत लागे।
जनम देहे तेखर तुमन, नाम ल जपव रे.....

बड़े बड़े तपसी मनतो गज़ब तप ल करथे
य चोला ल पायेबर भक्ति गज़ब करथे।
जतेक तुंहर बने संगी, ओतके भजव रे......

मत पियव तुम भांग शराब, पियत मत जी गांजा।
धीरे धीरे धन सिराथे, हो जाथे गज़ब करजा।

पुरवा के कमाई ल तुमन झन तो मेटव रे.....
जीव हिंसा झन तो करव, करव प्रेम के बाता,
मात पिता के बात मानव, मारन झन तुम लाता
ओखरे तुम सेवा ल करव, मेवा ल पाहव रे...

जुवा झन खेलव रे संगी, खेलव झन तुम पासा
रंडी अउ बेसिया ल छोडव होही सरबस नासा।
फोकट समे झन गवाव, भज ले राम रे ......

आठ घड़ी काम ल करव चार घड़ी आराम
एके घड़ी भजलव संगी मन म सीता राम
पेट के भीतर कसम खाके, माया में फंसेव रे

गनिका अउ अजामिल पापी, जपिन मन में राम
मीरा अउ कबीर सही मन, पहुचिन बैकुंठ धाम।
मन में धरव रामकृष्ण, शिव विष्णु रे
कहे शिवकुमार ओकर नाम ल जपव रे......