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इतिहास बोध / शशिप्रकाश

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पत्थर को धोता है पानी,
पानी को धोती है हवा
और फिर सुगन्ध
हवा को पवित्र करती है ।

हृदय को धोते हैं आँसू
आँसू को स्मृति बनाते हैं विचार,
विचार को शुद्ध और प्रामाणिक
बनाता है पसीना ।

पसीने को सार्थकता
मिलती है सृजन से,
सृजन को सार्थकता
मिलती है जीवन से
और जीवन को
धो-पोंछकर साफ करना होता है
रक्त से ।

(जनवरी, 1996)