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मन / अनुपमा तिवाड़ी

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मैं पहाड़ देखती हूँ
मन, पहाड़ लांघ जाता है ...
मैं नदी देखती हूँ
मन, नदी के साथ - साथ बहता जाता है ...
मैं चिड़ियों को देखती हूँ
मन, चिड़ियों के साथ - साथ उड़ता जाता है ...
मैं पेड़ों को छूती हूँ
मन एक हरी सुवासित साड़ी पहन, मुझसे लिपट जाता है ...
मैं बाहें फैलाती हूँ
सारा आकाश सिमट आता है...
मैं रात में तारों भरे आसमान को देखती हूँ
दो तारे मेरी आँखों में आ कर ठहर जाते हैं.