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राष्ट्रद्रोह / समृद्धि मनचन्दा

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वो चिल्ला रहे थे
पूछ रहे थे
मैं किस पक्ष में हूँ ?

मैं, बस, इतना ही कह पाई
वर्षा नदियों पाखियों के
झीनी उदासियों और
निशंक आँखों के पक्ष में

ये जानते हुए भी कि
जीवन कितना सस्ता है
मैंने परस्पर महँगे प्रेम किए हैं
मैं एक नश्वर सीत्कार और
चिरन्तन शान्ति के पक्ष में हूँ

वो राष्ट्रद्रोह !
राष्ट्रद्रोह ! चिल्लाते रहे
पर मैंने ओज की कोई कविता नहीं लिखी

मैंने लिखे सिर्फ़
कलरव और लोकगीत
हाँ, मैं प्रार्थनाओं के पक्ष में हूँ !