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मिट्टी / अरुण चन्द्र रॉय

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नमी रखकर
अपने भीतर
बीज को देती है गर्मी
बीज पनपता है
देता है फल-फूल
और गिरकर
मिट्टी बन जाता है

मिट्टी
न तो बीज के वृक्ष बनने पर
इतराती है
न उसके मिट्टी में मिलने पर
करती है विलाप

मिट्टी गर्म होती है धूप से
वह गीली होती है पानी से
वह पक कर आग में ईंट हो जाती है
कुम्हार के चाक पर ढल जाती है

फिर से मिट्टी होने पर उसे कोई गुरेज़ नहीं
यही है मिट्टी की सबसे बड़ी पहचान ।