कवाफ़ी आधुनिक कविता के प्रणेता माने जाते हैं। 1863 में सिकन्दरिया, मिस्र में जन्मे कवाफ़ी की कविताओं से गुज़रें तो ज्ञात होता है कि उन्होंने यूनानी समाज-जीवन की विडम्बना को गहरे धँसकर अभिव्यक्ति दी। पतनशील समाज की गहरी छायाएँ जो इंसान को इंसान से दूर कर रही थीं -- कवाफ़ी ने गहरे अवसाद में डूबकर उन्हें ज़बान दी।
कवाफ़ी ने मात्र 154 कविताएँ लिखीं जो यूनानी समाज और उसके इतिहास का एक रचनात्मक इतिहास है जिसके जरिये हम तत्कालीन समय के सच से वाक़िफ हो सकते हैं। ऐतिहासिक संदर्भों को केन्द्र में रखकर कवाफ़ी ने जो कविताएँ लिखीं वह इतिहास के ब्यौरें नहीं वरन् जीवन की विद्रूपता के ब्यौरें हैं- उसमें हम आधुनिक जीवन के सच को कलात्मक सौंदर्य की आँच में देख-परख सकते हैं।
कवाफ़ी अपनी कविता को संग्रह के मार्फ़त नहीं वरन् स्थानीय अख़बारों और पत्रिकाओं के मार्फ़त जन-जन तक पहुँचाने के हिमायती थे। यही वजह है कि उनकी कविताओं का संग्रह उनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित हुआ।
कवाफ़ी को अपने देश की सीमा से बाहर प्रसिद्धि उनकी अपनी पहली कविता ‘यथाका’ से मिलना शुरू हुई जो टी.एस. इलियट की पत्रिका ‘क्राईटेरियन’ में अँग्रेज़ी अनुवाद-रूप में प्रकाशित हुई थी।