बेदाग़ नहीं गुज़र पाता हूँ
इन रास्तों से
कभी कालिख़ लग जाती है
कभी रक्त-रंजित हो जाते हैं कपड़े
यदि लगना ही था तो
अपनों के प्यार का
दाग़ लग जाता मन पर
यदि होना ही था तो
इंसानियत का गहरा घाव
हो जाता तन पर
बेदाग़ नहीं गुज़र पाता हूँ
इन रास्तों से
कभी कालिख़ लग जाती है
कभी रक्त-रंजित हो जाते हैं कपड़े
यदि लगना ही था तो
अपनों के प्यार का
दाग़ लग जाता मन पर
यदि होना ही था तो
इंसानियत का गहरा घाव
हो जाता तन पर