Last modified on 17 अक्टूबर 2019, at 22:05

सम्पूर्ण स्त्री / प्रतिमा त्रिपाठी

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:05, 17 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रतिमा त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक स्त्री को जीना चाहते हो
तो पहले सीख लो उसके
इस पल को जीना, आज को जीना !
 फिर उसके खण्डहरों को जीना
उसकी नींव में दबे कुचले मन को जीना
उसकी भोगी यातनाओं को जीना !
फिर उसकी आकांक्षाओं को जीना
उसकी कल्पनाओ को जीना
भविष्य से जुड़े उसके सपनों को जीना !
उसके बाद उसके साथ जीना
नेत्र के भोग को, स्पर्श की अनुभूति को
और फिर जीना साथ-साथ आत्ममुक्ति को  !

यदि एक सम्पूर्ण स्त्री को जीना चाहते हो तो..