माँ, एक दिवस कहा तूने,
कितना-कितना है सहा तूने
तूने, माँ ने, माँ की माँ ने
दे दी सबने अपनी जानें
औरत सदियों से सोई थी
मैं औरत, अब हूँ जग्ग गई
लाऊँगी अब मैं सुबह नई
जब तक यह प्रात नहीं आती
यह काली रात नहीं जाती
तब तक यह जंग रहे जारी
लड़ती जायेगी यह नारी
भले रहे कुंआरी कन्यायें
होने न दूँगी हत्याये
मैं रोकूंगी सौदेबाजी
शादी के नाम पे बर्बादी
संकल्प यही दुहराऊँगी
मैं नया सवेरा लाऊँगी
नारी का मान बढ़ाऊँगी
नर को भी राह दिखाऊँगी
मैं उसको भी समझाऊँगी
मधुमास नया रच जाऊँगी
इतिहास नया लिख जाऊँगी।