ना बहन थी,
ना बेटी हुई,
बहुत नाज़ों से
पाल रही थी ,
एक पोती की
नाज़ुक तमन्ना!
मर्यादित मिठास
जीवन में होता...
अब मुश्किल में
जां आन पड़ी,
कलेज़े में हुक बड़ी!
डर और आतंक के
स्याह समुंदर में,
डूब उतरा रही हूँ,
छ: महीने की पोती को
कैसे लाल-मिर्ची की
पुड़िया पकड़ाऊँगी?
एक साल की बच्ची को
आँखों में डालने वाला
स्प्रे पकड़ाऊँगी?
डेढ़ साल की मुन्नी को स्पर्श ,
कैसा-कैसा
कैसे समझाऊँगी?
दो साल की चुन्नी को
कटार कैसे थमाऊँगी?
ढ़ाई साल की नन्ही को,
तीन साल की,
साढ़े तीन साल की.
चार साल की,
साढ़े चार साल की,
माखौल तो ना उड़ाओ...
बहुत शौक है सलाह देने का?
सलाह कोई कारगर तो सुनाओ?
समझु और समझाऊँ!
नारी होने का शुक्रिया दूँ..!