मन ही तीर्थ चारो, कान्हा संग।
मन श्यामहिं डूब चला, राधे रंग।
परमानंद मगन मन, गाये आज,
प्रीति करे परबस मन, भीगे अंग।
भूल सकल भव बंधन, राज समाज,
मिले जीव परमात्मन, प्रानहि भंग।
प्रीत सुधारस बरसे, गोकुल धाम,
पहन प्रीति का चोला, ध्यावै चंग।
प्रेम दिवानी राधे, खड़ी उदास,
अजब निराले प्रीतम, के सब ढंग।