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तपता सूरज / प्रेमलता त्रिपाठी

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खग कुल प्यासे घूमते, घूम रहा तूफान।
तपता सूरज नभ चढ़ा, पारा तीर समान।

अभिशापित से जीव हैं, मिले न जिसको छाँव,
नीर सरित के खींचता, तपता अब दिनमान।

भरे दुपहरी श्वांस अब, दीखे शीत न ठाँव,
सुबह सलोनी वायु से, राहत के अनुमान।

जल जीवन आधार है, लिए फिरें हम साथ
शीतल जल तन प्राण है, मिलता जीवन दान।

वृक्ष लगाकर हम करें, शमन धूप अरु ताप,
प्रकृति हमारी सहचरी, हरियाली कर मान।