Last modified on 30 अक्टूबर 2019, at 22:48

आयी बनठन / प्रेमलता त्रिपाठी

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:48, 30 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमलता त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पूनम शोभित रात, चाँदनी आयी बनठन।
रजत ओढ़नी गात, रागिनी गाये दुल्हन॥

प्रीतम चंदा द्वार, सजी गलियाँ चौबारे।
निशा करे श्रंृगार, महकता जैसे यौवन॥

पट घूँघट के खोल, सरस रजनी मुस्काये।
करे पपीहा शोर, मिलन को तरसे तन मन॥

बहती यमुना धार, साँवरे रंग समायी।
आयेंगे यदुनाथ, बढ़े खुशियों से धड़कन॥

प्रेम जगत निस्सार, बाँवरी प्रीत न माने।
जाता मन भी हार, नहीं घटती यह उलझन॥