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दोपहरी सूनापन / विजया सती

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एक बेहूदा मज़ाक है दोपहर

उसे नज़रअंदाज़ कर देना चाहती हूँ

लेकिन

ये बेरोज़गार सन्नाटा

धरना दिए बैठा है

और मैं

शाम की राह देख रही हूँ-

शायद कोई फैसला हो सके !