१
ग़म बढे़ आते हैं क़ातिल की निगाहों की तरह
तुम छिपा लो मुझे, ऐ दोस्त, गुनाहों की तरह
२
जब भी तन्हाई से घबरा के सिमट जाते हैं
हम तेरी याद के दामन से लिपट जाते हैं
३
लिखा हुआ था जिस किताब में, कि इश्क़ तो हराम है
हुई वही किताब ग़ुम, बड़ी हसीन रात थी
४
दिल तो रोता रहे और आँख से आंसू न बहे
इश्क़ की ऐसी रिवायात ने दिल तोड़ दिया
५
ज़िक्र जब होगा मोहब्बत में तबाही का कहीं
याद हम आएँगे दुनिया को हवालों की तरह
६
ज़हर पीने की तो आदत थी ज़माने वालों
अब कोई और दवा दो कि मैं ज़िन्दा हूँ अभी
७
आप कहते थे कि रोने से न बदलेंगे नसीब
उम्र भर आप की इस बात ने रोने न दिया
८
फ़लसफ़े इश्क़ में पेश आए सवालों की तरह
हम परेशाँ ही रहे अपने ख़यालों की तरह
९
जब भी अंजाम-ए-मोहब्बत ने पुकारा ख़ुद को
वक़्त ने पेश किया हम को मिसालों की तरह
१०
ये भी तो सज़ा है कि गिरफ़्तार-ए-वफ़ा हूँ
क्यूँ लोग मोहब्बत की सज़ा ढूँढ़ रहे हैं
११
तेरे जाने में और आने में, हमने सदियों का फ़ासला देखा
फिर न आया ख़याल जन्नत का, जब तिरे घर का रास्ता देखा
१२
रोना नसीब में है तो औरों से क्या गिला
अपने ही सर लिया कोई इल्ज़ाम रो पड़े
१३
शायद मैं ज़िन्दगी की सहर ले के आ गया
क़ातिल को आज अपने ही घर ले के आ गया
१४
फ़ासले उम्र के कुछ और बढ़ा देती है
जाने क्यूँ लोग उसे फिर भी दवा कहते हैं
१५
तेरी आँखों में हमने क्या देखा, कभी क़ातिल कभी ख़ुदा देखा
अपनी सूरत लगी पराई-सी, जब कभी हमने आईना देखा
१६
सब दर्द मिटा दें हम, हर ग़म को सज़ा दें हम
कहते हैं जिसे जीना दुनिया को सिखा दें हम
१७
पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम पत्थर के ही इंसां पाए हैं
तुम शहर-ए- मुहब्बत कहते हो, हम जान बचाकर आए हैं
१८
ज़ख़्म जो आप की इनायत है इस निशानी को नाम क्या दे हम
प्यार दीवार बन के रह गया है इस कहानी को नाम क्या दे हम
१९
ये शीशे ये सपने ये रिश्ते ये धागे, किसे क्या ख़बर है कहाँ टूट जाएँ
मुहब्बत के दरिया में तिनके वफ़ा के, न जाने ये किस मोड़ पर डूब जाएँ
२०
लबों को सी के जो बैठे हैं बज़्मे-दुनिया में
कभी तो उनकी भी ख़ामोशियाँ सुनो तो सही