Last modified on 7 दिसम्बर 2019, at 19:22

कुछ लिखूँ / राजकिशोर सिंह

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:22, 7 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजकिशोर सिंह |अनुवादक= |संग्रह=श...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चाहता हूँ कुछ लिऽूँ
अपनी बात अपने हालात
लेकिन
नहीं है कलम में ताकत
नहीं है दिल में हिमाकत
बैठता हूँ लिऽने जब
सोचते-सोचते हो जाती
सुबह से शाम
लिऽ नहीं पाता
मेहनत हो जाती बेकाम
अंत में
घबरा जाता मन
काँप जाता तन
क्योंकि

लिऽता हूँ अहंकारवश
अपने ही घर में
पढ़कर अपनी कविता
मारता स्वयं ताली
और चलाता कुदाल
अपने पर ही मैं
जन्म से गया नहीं कभी प्रदेश
बदला नहीं अपना वेश
घर में पता नहीं चली
दुनिया की अंगड़ाई
दुनिया की गहराई
बताओ कैसे लिऽोगे अपनी बात
दुनिया के अऽबार में
इस आध्ुनिक संसार में
क्षेत्रा जिध्र का लो तुम
चलेगा पता
वह आगे है तू पीछे है
वह ऊँचे है तू नीचे है।