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वा सुपनां रो संसार / कमल सिंह सुल्ताना

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वा बालपणै री मधरी यादां
आँख्यां में आँसू ढळकावै
नेह अणुथो बिगर द्वेष रो
हरसाता ले ऊभा नारेळ
कूंगरिया म्हारै मन भाता
याद अजै वा मेही मस्ती
जिण में तिरती अपणी किश्ती
भिनोडे धूड़े सूँ बुणता
सुंदर सुपनां रो संसार
एक मकान अर बाडों ठाता
मंदिर में दीप जलाता
सूख्या पछि महेल ढह जात
मुमलिया म्हारै मन भाता
जोय जोय म्है घणा हरखता
याद अजै वा डाळ नीम रा
जिण ऊपर म्है रमता खेल
निम्बोळ्यां खाकर म्हारा
हींये उपजता मन रा मेळ
इण डालां सूँ उण डाला
साथी रे संग धूम मचाता
घणा लागता मन प्यारा
जीसा लाया रमतिया
म्है पल में खेत जोततो
पानी पातो रे भरपूर
टेक्टर लारै जोड़ टोलकी
फिरतो पग उभराणो गांव
दर्द नहि व्हैतो म्हारै पगळाँ
ऊने तावड़ा माई
लकड़ी री गाड़ियां चलायां
सूनो व्हैग्यो संसार आपणो
अर सूनी होगी अपणायत
इण सूनै संसार में
नैणां हरख निहारे पालणो
जिण सूँ ले व्है सफर नापग्या
तुतलाता बोलणिया अज
धड़ाधड़ इंग्लीश बोलग्या
जिण री आख्याँ में नेह बरसतो
माटी माईं कूड़ खळकतो
जोय रयो बाटड़ी बीरा
जोय रयो बाटड़ी बीरा