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एक कप कॉफी / पूनम गुजरानी

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चले आओ...
फिर एक बार
पीने एक कप
गरमा गरम कॉफी।

कॉफी की थोङी-सी कङवाहट
और रसीली चीनी की
मिठास में
घोल दें
अपनी तमाम परेशानियाँ।

लरजती भाप के साथ
उङा दें अपनी उदासियाँ
उसकी गरमाहट में भूल जाएँ
जिन्दगी के गम।

कॉफी का कप
फकत कप नहीं है
बहाना है
तुम्हें जानने का
महसूस करने का
तुम्हारी शिकायतें सुनने का
और अपनी
ख्वाहिशों का
रंगीन आसमां दिखाने का।

कहो...
कहो आओगे ना
 जब सांझ उतरने लगेगी
पर्वत के उस पार
झील के किनारे
उस छोटी-सी गुमटी पर
जहाँ एक कप कॉफी
कर रही है
 तुम्हारा इंतज़ार।