पुरुषार्थ / लता सिन्हा ‘ज्योतिर्मय’

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इस धराधाम को देखूँ मैं
फिर देखूँ नील गगन को
इस जीव जगत को देखूँ
फिर देखूँ मैं कण-कण को....

यह मानव जीवन श्रेष्ठ यहाँ
सृष्टि की अनुपम है रचना
अनमोल मिले एक जीवन में
सदा व्यर्थ विचारों से बचना!

मिलती हर सांसे गिनती में
धड़कन न एक उधार मिले
हैं माया के छलते बंधन
इस पार कोई, उस पार मिले...

उद्देश्ययुक्त अद्भुत जीवन
किए आत्मसात परमार्थ रहे
सारथी बन संपूर्ण इंद्र के
जगत हेतु पुरुषार्थ रहे...

तदोपरान्त की उपलब्धि
निश्चय अमिट हो श्रेष्ठ भी हो
कुछ ऋण पार्थिव संबंधों के
कर्त्तव्यनिष्ठ व विशिष्ट भी हो....

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