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दशरथ लाल / रंजना सिंह ‘अंगवाणी बीहट’

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दशरथ सुत हँसत लाल,
मनहर लगत पग चाल।
चलत लटपट चितचोर,
छवि निरखत नयन मोर।

मिलत ह्रदय सुख विशाल,
छितरल घन लट सुभाल।
दिख कर सुत चपल खेल,
दशरथ मन मुदित भेल।

शिशु सृजन जग अवतार,
हरत जन दुख अरि मार।
बजत करतल भरमार ,
जय -जय दशरथ कुमार।

पवनसुत अतुलित शक्ति,
प्रभु पद कमल प्रिय भक्ति।
सियमय सकल जग जान,
धर सब प्रभु चरण ध्यान।