Last modified on 28 अगस्त 2008, at 23:59

बलिपंथी / महेन्द्र भटनागर

198.190.230.62 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 23:59, 28 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह= विहान / महेन्द्र भटनागर }} <poem> ह...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


हम कब पथ में रुकते हैं ?

परिणामों की परवाह न, हम तो कर्मों में तत्पर ;
पल-पल का उपयोग यहाँ, खोने पाये कब अवसर ?
आज़ादी-आन्दोलन में सिर देने वाले सैनिक
अत्याचारों से डर कर कब दुर्बल बन झुकते हैं ?

जब आँधी आती है तब जर्जरता मिट जाती है,
विप्लव होता जब जग में, शांति तभी ही आती है,
ज़ंजीरों को तोड़े बिन हम चैन तनिक ना लेंगे —
निज उद्देश्यों के हित, जीवन में सब सह सकते हैं !
1942