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बचल राग / मुनेश्वर ‘शमन’

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राख़ के नीचे डबल हाँ आग हे।
बचल ई जिनगी में मिठगर राग हे।

छोड़ अइलूँ हम बहुत पीछू हे मीत।
मोड ऊ जहवाँ रचावय फाग हे।

सरारत देखऽ तो, तनी तकदीर के।
दू:ख-दरद भरी, देलक कर भाग हे।

प्यार खुद आधा-अधूरा, दइ भी की।
ई तो बस रंगीन-मोहक झाग हे।

दुआ माँगे कोय तो केकरो से की।
बहारे जो सजा न पावय बाग हे।