Last modified on 28 दिसम्बर 2019, at 23:51

मुहब्बत से भरे दिल को शिकस्ता साज़ कर देना / हरिराज सिंह 'नूर'

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:51, 28 दिसम्बर 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मुहब्बत से भरे दिल को शिकस्ता साज़ कर देना।
गुनाहों को मिरे पर तुम नज़र अंदाज़ कर देना।
 
जुदाई का तुम्हारी हम सितम हर इक भुला देंगे,
मगर तुम अपने आने का हसीं आग़ाज़ कर देना।
 
मरीज़े-इश्क़ दुनिया में मिले जो भी, जहाँ पर भी,
इलाज उसका मुनासिब मेरे चारासाज़ कर देना।
 
किसी भी वक़्त मिल जाए कहीं कोई फ़रिश्ते-सा,
सुपुर्द उस आदमी को दिल का तुम हर राज़ कर देना।
 
परों को जो समेटे घोंसलों में अपने बैठे हैं,
उन्हें भी ‘नूर’ इक दिन माइले-परवाज़ कर देना।